Vat Purnima Vrat 2025:
प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह की Vat Purnima Vrat 2025 तिथि को वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है । इस दिन विवाहित महिलाएं वट वृक्ष की पूजा कर सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं और अपने पति के अच्छे स्वास्थ्य, दीर्घायु और अखण्ड सौभाग्य की कामना करती हैं । Vat Purnima Vrat व्रत के दौरान महिलाएं परम्परा अनुसार वस्त्र पहनकर 16 श्रृंगार करती हैं और वट वृक्ष की सात बार परिक्रमा कर मौली बांधती हैं । धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत से पति को दीर्घायु और विवाह को स्थिरता मिलती है ।
Vat Purnima Vrat 2025:
विवाहित महिलाओं के लिए Vat Savitri Vrat 2025: वट पूर्णिमा का दिन बहुत ही खास होता है । यह न सिर्फ एक धार्मिक पर्व है, बल्कि आस्था, प्रेम और विश्वास का प्रतीक भी है । इस दिन महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र और अखण्ड सौभाग्य की कामना के लिए व्रत रखती हैं और वट (बरगद) के पेड़ की पूजा करती हैं.
आइए जानतें हैं आचार्य दीपक जी से वट सावित्री व्रत कब करें, कैसे करें और व्रत से जुडी कथा…
Vat Savitri Vrat 2025: वट सावित्री व्रत कब है ?
हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में Vat Savitri Vrat वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत 10 जून 2025, दिन मंगलवार को रखा जाएगा । इस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि प्रातः 11:35 मिनट से शुरू होकर 11 जून दोपहर 01:12 मिनट तक रहेगी । व्रत और पूजा 10 जून को करें, और 11 जून को स्नान-दान आदि पुण्य कर्म करें.
Vat Savitri Vrat: व्रट सावित्री पूर्णिमा की पूजा विधि
इस दिन Vat Savitri Vrat की शुरुआत सुबह जल्दी उठकर स्नान करके करें । इसके बाद लाल या पीले रंग के कपड़े पहनें और सुहाग से जुड़े 16 श्रृंगार करें । फिर वट वृक्ष (बरगद का पेड़) के पास जाकर उसकी सफाई करके उसकी जड़ में जल चढ़ाएं ।
पूजा की थाली में रोली, मौली, चावल, फूल, फल, मिठाई रखकर दीपक जलाएं । वट वृक्ष की पूजा करने के बाद, उसकी सात बार परिक्रमा करें और हर परिक्रमा में मौली लपेटते हुए अपने पति की लम्बी उम्र की प्रार्थना करें । इसके बाद वट वृक्ष के नीचे बैठकर सावित्री-सत्यवान की कथा पढ़ें या सुनें । अंत में वट वृक्ष की आरती करें और व्रत का पारण सूर्यास्त के बाद सात्विक भोजन से करें ।
वट पूर्णिमा पूजा एवं मन्त्र (Vat Savitri Vrat Mantra)
पूजा करते समय निम्न मन्त्रों का उच्चारण करने से पूजा और भी फलदायी मानी जाती है:-
वट सिंचामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः ।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले ।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा ॥
अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते ।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ॥
इन मन्त्रों को श्रद्धा और भावना से बोलना चाहिए, ताकि पूजा का प्रभाव गहरा हो और अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति हो ।
(Vat Savitri Vrat Katha 2025) वट सावित्री व्रत कथा का पाठ
प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा अश्वपति और उनकी पत्नी मालवी के कोई सन्तान नहीं थी । उन्होंने देवी सावित्री की कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें एक पुत्री का वरदान दिया । उस कन्या का नाम भी सावित्री रखा गया । सावित्री जब विवाह के योग्य हुई, तो उन्होंने अपने पिता से एक साधारण युवक सत्यवान के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की, जो कि एक वनवासी थे और उनकी आयु भी कम थी । जब सावित्री के पिता को यह बात पता चली, तो वे चिन्तित हुए, लेकिन सावित्री अपने निर्णय पर अटल थी । सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया और वे खुशी-खुशी जीवन व्यतीत करने लगे ।
सावित्री को ये बात अच्छे से पता थी कि सत्यवान की उम्र ज्यादा नहीं है, इसलिए वह हमेशा अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना करती रहती थी । एक दिन जब सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने गए थे, तो सावित्री भी उनके साथ गई । अचानक सत्यवान गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गई । यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए । सावित्री ने यमराज का पीछा किया और उनसे अपने पति के प्राण वापस करने की प्रार्थना की । सावित्री की भक्ति और पतिव्रत धर्म को देखकर यमराज ने सावित्री को कई वरदान दिए लेकिन वह कोई भी वरदान लेने के लिए सहमत न हुई और उसकी इतनी कठिन परीक्षा को देखते हुए अंत में सावित्री ने अपने पति के प्राण वापस मांगे । यमराज सावित्री के पति सत्यवान को जीवन दान देकर अपने लोक में चले गए ।
ज्योतिषाचार्य Dr. Sumit की ओर से प्रार्थना है, कि आपका दिन शुभ हो🙏🏻💐
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